Tuesday, October 11, 2022

 प्रश्न: अनंत पद्म चतुर्दशी का क्या महत्व है, और कलाई पर लाल धागा बांधने का क्या उद्देश्य है? 

श्री श्री रवि शंकर: अनंत पद्म चतुर्दशी का त्यौहार अनंत को मनाने का उत्सव है। (अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत पद्मनाभ स्वामी (भगवान विष्णु) की पूजा होती है।) 

जीवन का उच्चतम ध्येय है अनंत का अनुभव करना। बिना अनंत के अनुभव के मनुष्य जीवन पशु के जीवन के समान है। आत्मा की अनंतता की एक झलक मात्र पा जाने से जीवन में बदलाव आ जाता है। सभी साधक इसके ज़रिये ही साधक बनते है - ध्यान में साधक अनंत की एक झलक का अनुभव कर लेते हैं। 

चित्रकार ने भगवान विष्णु को क्षीर सागर (दूध के सागर) पर नाग के बिछौने पर विश्राम करते हुये दिखाया है। मन की आनंदित स्थिति क्षीर सागर है, जहाँ संतोष की लहरे हिलोरे लेती हैं। नाग, मन की जागृत अवस्था का प्रतीक है - कुण्डलिनी शक्ति जो कि हमारे भीतर है। मन की आनंदित और जागृत अवस्था के बीच, चैतन्य विश्राम करता है। इसकी तीन परते हैं। दूध के सागर का अर्थ है कि वातावरण अनुकूल है। वातावरण के अनुकूल होने पर ही समाधि संभव है। शास्त्रों का अध्य्यन मनन करने के लिये भी ये आवश्यक है कि वातावरण में कोई व्यवधान ना हो। अगर आस-पास भूकंप या बाढ़ आई हो, तो कोई बैठ कर शास्त्र का पाठ, या ज्ञान की चर्चा नहीं करेगा। इसीलिए क्षीर सागर अनुकूल वातावरण का प्रतीक है। 

जब तक ज्ञान का गहराई से अनुभव ना हो, वह ज्ञान सतही रहता है। जितना चाहे कोई वेदांत का अध्य्यन कर ले, पर बिना अनुकूल वातावरण के...। 

जब कुण्डलिनी शक्ति ऊपर उठती है, तब हमारे भीतर जो चैतन्य शक्ति है, जो अनंत है, उसी का राज हो जाता है। उस अनंत शक्ति की नाभि से बिना किसी प्रयास के ही कमल का प्रागट्य हो जाता है। इसी तरह सृजन शक्ति का जन्म हुआ। 

चैतन्य के आनंदित स्वरूप से सृजन शक्ति का उदय होता है। बड़े से बड़े वैज्ञानिकों ने विश्राम करते हुये ही नये अविष्कार किये हैं। 

शोधकर्ताओं के लिये ये परम आवश्यक है कि उनका वातावरण अनुकूल हो - कोई शोर या व्यवधान ना हो। आप किसी से दो दिन में कोई नया अविष्कार करने को नहीं कह सकते हैं। अविष्कार, समय के बंधन से परे है, और प्रतिकूल वातावरण में नहीं हो सकता है। 

नाभि को दूसरा मस्तिष्क भी कहा जाता है। इस तरह, हमारे शरीर में दो मस्तिष्क हैं। एक तो सिर है, और दूसरा है नाभि। इसे मणिपुर चक्र (solar plexus) कहते हैं। दिमाग जो कार्य करता है, मणिपुर चक्र उसकी सहायता करता है। आधा कार्य तो मणिपुर चक्र ही करता है। इसीलिये, जब पेट अस्वस्थ होता है, तो अक्सर दिमाग में उथल पुथल होती है, मन में बहुत सारे विचार होते हैं।

इसलिये कहा गया है कि योग साधना से मणिपुर चक्र खिल उठता है। जो लोग योग साधना नहीं करते, उनका मणिपुर चक्र एक आमले के आकार का होता है। जब कुण्डलिनी शक्ति विकसित हो, तो मणिपुर चक्र का आकार एक संतरे से भी बड़ा हो जाता है - एक खिले हुये कमल के फूल की तरह।..

Jai gurudev 🙏🏻

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